नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-27

रूप परिवर्तन करने की शक्ति के साथ-साथ लक्षणा को एक और चीज उपहार में मिली,, वह थी संसार के किसी भी प्राणी को आसानी से समझ पाने और उसे उसी भाषा में बात कर अपनी बात समझ पाने की शक्ति,,,,,! जिसके कारण अब लक्षणा के लिए संपूर्ण सृष्टि एक परिवार की तरह हो गया था, क्योंकि जब भाषाओं का बंधन समाप्त हो जाता है और भावो का आदान-प्रदान सरल हो जाता है। तब हर किसी से बातचीत कर उनके विचार जानना और उनके समक्ष अपना विचार रखना आसान हो जाएगा। इस स्थिति में हर जगह पारिवारिक संबंध बनाना और भी आसान हो जाता है।

लक्षणा अपनी नई शक्तियों को पाकर अत्यंत प्रसन्न थी। लक्षणा खुशी-खुशी घर लौट आई, उस घड़ी के इंतजार में जब गुरुदेव के इशारे पर उन्हें अपने मुख्य लक्ष्य की और आगे बढ़ाना है। क्योंकि जल्द ही हजारों सालों में वह मुहूर्त आने वाला था, जिस  समय नागपत्री तक पहुंचने का रास्ता उसकी आराधना कर उसका आशीर्वाद प्राप्त करना और भी आसान हो जाएगा।

यही सोचते हुए कदंभ और लक्षणा घर लौट आए। दोनों ने तय किया कि वह अगली सुबह गुरुदेव के बताए मुताबिक उस चमत्कारिक शंख की प्राप्ति हेतू दक्षिण सागर की ओर बढ़ेंगे।जिससे किसी भी द्वारा को आसानी से खोला जा सकता है। लेकिन इधर गुरुदेव के चेहरे पर चिंता का भाव देख चित्रसेन जी  खुद भी चिंतित होने लगे थे। और आखिर चित्रसेन ने पूछ लिया.....

गुरुदेव जहां तक मैं देख पा रहा हूं, कि आप किसी विषय को लेकर चिंतित नजर आते हैं। और ऐसा बहुत कम बार हुआ कि आप चिंतित नजर आए हो?? क्या मैं इसका कारण जान सकता हू?? तब गुरुदेव ने चित्रसेन जी की ओर देखकर कहा, चित्रसेन किसी साधक को शक्ति सामर्थ्य प्रदान कर बनाया जा सकता है। लेकिन विद्या प्रदान करने के बाद भी उसकी चिंतन शक्ति को बदलना या उसे पूर्ववत बनाए रखना साधक के ऊपर निर्भर करता है।

यदि संपूर्ण सामर्थ्यवान बना देने के पश्चात भी शिष्य किसी परीक्षा में पास न हो सके, तो सबसे ज्यादा दुख उसके गुरु को ही होता है। मैं नहीं चाहूंगा कि मेरा कोई भी शिष्य इतना सामर्थ्यवान होते हुए भी अपनी चिंतन स्थिति को ना बदल सके। इतना कह कर गुरुदेव शांत होकर साधना में लीन हो गए। लेकिन उनके चेहरे के भाव साफ साफ बता रहे थे, कि वह कहीं ना कहीं अपने दूरस्थ शिष्य को लेकर परेशान है।

इधर कदंभ और लक्षणा दोनों खुशी-खुशी अत्यंत गर्व के साथ गुरुदेव और चित्रसेन जी से विदाई ले लौट रहे थे, कि तभी एक तेज हवा के झोंकों ने जैसे उनका ध्यान अपनी और आकर्षित किया। और जब उन्होंने ध्यान दिया तो वे देखते हैं, कि वह हवा का झोंका देखते ही देखते एक बवंडर में परिवर्तित हो गया, और अचानक सामने खड़े पेड़ को चपेट में लेते हुए, उस पर बैठे सारे पक्षियों को अपने साथ ले सरोवर की और बढ़ने लगा।

जिसे देखकर यह लगभग तय था कि वह बवंडर उन बेचारे नीरीह प्राणियों को सरोवर में डूबाकर ही मानेगा। यह देख कदंभ ने बिना देरी किए हुए उन्हें बचाने का प्रयत्न करते हुए उस बवंडर के मध्य जाकर उसे स्थिर करने का प्रयास उचित समझा। और वह बिना कुछ सोचे समझे सीधे उसे बवंडर के मध्य चला गया। लेकिन कदंभ के बवंडर के भीतर जाते ही बवंडर ने एक विकराल रूप ले लिया एवम् कदंभ के साथ संपूर्ण पक्षियों को लेकर उस सरोवर में समा गया।

लक्षणा  इससे पहले की कुछ समझ पाती। वह बवंडर उस सरोवर के भीतर कदंभ और सभी पक्षियों को लेकर समा गया। लक्षणा दौड़ लगाकर वहां पहुंची और इससे पहले ही कि वह कुछ समझ पाती। वह जल पूर्ववत शांत हो गया। जैसे संपूर्ण बवंडर को उसने अपने अंदर समा लिया हो।

लक्षणा ने आसपास देखा मदद के लिए पुकार भी लगाई। और कोई उपाय न देख लक्षणा ने सरोवर में उतरकर भी देखा। लेकिन उसे कुछ ना नजर आया। तब तो लक्षणा अपने आप को असहाय देख फूट फूट कर रोने लगी। लेकिन वहां उसकी बात सुनने वाला कोई नहीं था। अंत में उसने एक बार अपनी इच्छाधारी होने का उपयोग कर मछली बन जल को भी टटोल लिया। लेकिन सारे प्रयास उसके निरर्थक नजर आए। ना ही वो पक्षी और ना ही कदंभ, कुछ भी तो ना था वहां।

लक्षणा पुनः अपने शक्ति से मानव रूप में आ गई। लक्षणा को अब जलाशय पर क्रोध आने लगा। और वह अपने मन में उस संपूर्ण सरोवर को सुखा देने का विचार कर अपनी संकल्प शक्ति का उपयोग करने ही जा रही थी, कि तभी उसे अचानक किसी के आने की आहट सुनाई दी।

लक्षणा ने देखा कि एक बालक इस और बड़ा चला आ रहा है। उसने जाकर लक्षणा को गौर से देखा। और बोला... हे बहन तुम कौन हो?? और भला इस मायावी सरोवर के निकट क्या कर रही हो?? और अभी तुम क्या करने जा रही थी?? क्या शक्तियां निज इच्छा या प्रतिशोध के लिए मिली है, जो तुम व्यर्थ ही उसका उपयोग करने जा रही थी।

लक्षणा को आत्मग्लानि के साथ आश्चर्य भी हुआ कि आखिर वह छोटा सा बालक यह कैसे भाप गया। और इतना सब कुछ कैसे जानता है। तब लक्षणा ने अपने विवेक का उपयोग कर शांतिपूर्वक उसे बालक से कहा कि भला हो तुमने मुझे बहन कहकर पुकारा। मेरे भाई मेरी सहायता करो.... कृपया मेरी सहायता करो। मेरा प्यारा मित्र कदंभ और कुछ पक्षियों को यह जल सरोवर एक बवंडर के साथ आया और उन सभी को अपने अंदर समेटकर ना जाने कहां छिपा बैठा है, और अब इतना ढूंढने पर भी मुझे नजर नहीं आते।

मैंने बहुत प्रयास किया। इस जलाशय से विनती भी की, लेकिन यह भी कोई जवाब नहीं देता। इसलिए लगता है, कि इसे अपनी शक्ति का परिचय देना ही होगा। तब ही कहीं शायद सही उत्तर मिलेगा।

तभी उस बालक ने कहा बहन बस इतनी सी बात,,, लेकिन यह तो बताओ की जिस जलाशय ने तुम्हारे कहे अनुसार,,,, अनेकों को पक्षियों, तुम्हारे मित्र कदंभ और उतने तेज बवंडर को अपने अंदर समाहित कर लिया, और तुम्हारे इतने प्रयास के बाद भी तुम्हारा मित्र तुम्हें नहीं दिखा?? हां, मेरे इतने प्रयास के बाद भी मेरा मित्र और वह पक्षी मुझे नहीं दिखे, कहते हुए लक्षणा उस बालक की और देखने लगीं।

क्रमशः......

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